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ये फ़िक्शन स्टोरी नहीं है, ये आज के टकक्नोलोजि दुनिया की हक़ीक़त है. मुझे पता नहि है भारत का क्या हाल है लेकिन अमेरिका में तो रियालिटी यही है. अपनी भारतीय घरों की.
मेरी पड़ोस में एक भारतिय क़ुतुम्ब रहेते है, मैं मेरे बच्चेको स्कूल छोड़ ने के लीए जा रही थी तो फूटपाथ पर एक ३० साल की भारतीय नारी कुत्ते को walk के ऊपर ले के जा रही थी. मुझे देख के ताज्जुब हुआ की अमेरिकन को तो दोस्त चाहिए एसीलिए की वो अकेले ज़िंदगी बसर करते है. लेकिन ये नारी को क्या हो हुआ है.
आजकल ये भी advanced ज़िंदगी की फ़ैशन गिनी जाती है की. बड़े में बड़े घर ख़रीदो, घर का monthly इंस्टालमेंट भरने के किए मियाँ, बीबी दोनो पूरा दिन काम करे. बच्चे अगर बड़े है तो स्कूल में होते है अगर छोटे है तो बच्चेघरो में होते है. जब सब लोग थोड़े घंटे के लिए घर पर सोने के लिए आते है तो किसीको किसी के लिए टाइम नहि होता क्यूँकि घर का काम, कल की तययारी करना पड़ता है. बच्चों को iPhone, iPod, Ipad, computer games पकड़ाई जाती है ताकि बच्चे अपने में मशरूफ ओर माँ-बाप अपने में मशरूफ, रातको साथ में जोभी खाना है, healthy, unhealthy mostly time unhealthy ही होता है क्यूँकि ताज़ा खाना बनाने में time लगता है ओर time है नहि, पैसे तो आते है लेकिन बच्चे किसी के पास बड़े होते है, माँ-बाप ओर बच्चों का दिल मिलता नहि है, जो भारतीय घर की moral value होती है वो दी नहि जातीं.
ऐसे ही बच्चे बड़े होते है, पैसे कमाते कमाते ज़िंदगी गुज़र जाती है, बच्चे बडे होके अपना धर्म भी छोड़ देते है क्यूँकि माँ-बाप ने कभी टाइम दिया ही नहि.
मैंने अपनी आँखों के सामने देखा है, ओर जो पैसे कमाये है वो भी कोई काम में नहि आते. मॉ-बाप को सबके लिए टाइम है लेकिन अपने बच्चों के लिए टाइम नहि है. जो इंसानकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पूँजी है.
उम्मीद है कि atleast अपने भारतीय माँ-बाप की आँखें जल्दी खुले बहुत देर होने से पहले.
ये फ़िक्शन स्टोरी नहीं है, ये आज के टकक्नोलोजि दुनिया की हक़ीक़त है. मुझे पता नहि है भारत का क्या हाल है लेकिन अमेरिका में तो रियालिटी यही है. अपनी भारतीय घरों की.
ReplyDeleteमेरी पड़ोस में एक भारतिय क़ुतुम्ब रहेते है, मैं मेरे बच्चेको स्कूल छोड़ ने के लीए जा रही थी तो फूटपाथ पर एक ३० साल की भारतीय नारी कुत्ते को walk के ऊपर ले के जा रही थी. मुझे देख के ताज्जुब हुआ की अमेरिकन को तो दोस्त चाहिए एसीलिए की वो अकेले ज़िंदगी बसर करते है. लेकिन ये नारी को क्या हो हुआ है.
आजकल ये भी advanced ज़िंदगी की फ़ैशन गिनी जाती है की. बड़े में बड़े घर ख़रीदो, घर का monthly इंस्टालमेंट भरने के किए मियाँ, बीबी दोनो पूरा दिन काम करे. बच्चे अगर बड़े है तो स्कूल में होते है अगर छोटे है तो बच्चेघरो में होते है. जब सब लोग थोड़े घंटे के लिए घर पर सोने के लिए आते है तो किसीको किसी के लिए टाइम नहि होता क्यूँकि घर का काम, कल की तययारी करना पड़ता है. बच्चों को iPhone, iPod, Ipad, computer games पकड़ाई जाती है ताकि बच्चे अपने में मशरूफ ओर माँ-बाप अपने में मशरूफ, रातको साथ में जोभी खाना है, healthy, unhealthy mostly time unhealthy ही होता है क्यूँकि ताज़ा खाना बनाने में time लगता है ओर time है नहि, पैसे तो आते है लेकिन बच्चे किसी के पास बड़े होते है, माँ-बाप ओर बच्चों का दिल मिलता नहि है, जो भारतीय घर की moral value होती है वो दी नहि जातीं.
ऐसे ही बच्चे बड़े होते है, पैसे कमाते कमाते ज़िंदगी गुज़र जाती है, बच्चे बडे होके अपना धर्म भी छोड़ देते है क्यूँकि माँ-बाप ने कभी टाइम दिया ही नहि.
मैंने अपनी आँखों के सामने देखा है, ओर जो पैसे कमाये है वो भी कोई काम में नहि आते. मॉ-बाप को सबके लिए टाइम है लेकिन अपने बच्चों के लिए टाइम नहि है. जो इंसानकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पूँजी है.
उम्मीद है कि atleast अपने भारतीय माँ-बाप की आँखें जल्दी खुले बहुत देर होने से पहले.